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khajuraho temples the message of sexuality and sex education

खजुराहो के मंदिर: कामुकता और संभोग शिक्षा का संदेश

 

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भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खजुराहो के मंदिर हैं, जो अपनी अद्वितीय शिल्पकला और कला के लिए प्रसिद्ध हैं। खजुराहो के मंदिरों में वास्तुकला और संगीत के माध्यम से कामुकता और संभोग शिक्षा के महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाने का कार्य किया गया है।

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  1. कामुकता का प्रतीक: खजुराहो के मंदिरों में आकर्षण की ओर बढ़ते हुए, कुछ मंदिर कामुकता और शृंगार के विविध पहलुओं को प्रस्तुत करते हैं। ये मूर्तियां जीवन के आनंदों और इंद्रिय सुखों को दर्शाने का कार्य करती हैं। इसका माध्यम शिक्षा है कि जीवन के आनंदों को सही तरीके से उपयोग करना भी महत्वपूर्ण है।
  2. संभोग की महत्वपूर्ण भूमिका: खजुराहो के मंदिरों में विभिन्न संभोग संस्कृतियों के चित्रण हैं, जो व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों की महत्वपूर्ण भू मिका  को प्रस्तुत करते हैं। यह सिखाते हैं कि संबंधों का महत्व और संभोग की अद्वितीयता क्या होती है।
  3. जीवन का सुंदरता को प्रस्तुत करना: खजुराहो के मंदिर बताते हैं कि जीवन के सुंदरता को मन, शरीर, और आत्मा के साथ संतुष्ट करना महत्वपूर्ण है। ये मंदिर शिक्षा देते हैं कि जीवन के आनंद को सही तरीके से प्राप्त करने का तरीका क्या होता है।
  4. कला और संस्कृति:-खजुराहो के मंदिरों की कला और संस्कृति दुनिया भर में मशहूर हैं। इन मंदिरों की शिल्पकला ने वास्तुकला के क्षेत्र में भारतीय संस्कृति को गौरवशाली बनाया है। मंदिरों की विशिष्टता उनके चित्रित दीवारों पर वीर्यावादी और कामुक चित्रण में है, जो मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करते हैं। इसके अलावा, यहां के मुख्य मंदिरों के शिखर, गुंबद, और अद्वितीय सिलिका स्टोन काम उनकी कला की महत्वपूर्ण विशेषता हैं।

 

इन मंदिरों का विशेष महत्व है क्योंकि वे सैकड़ों साल पुराने हैं और यहां की शिल्पकला और कला का अद्वितीय प्रतीक हैं। खजुराहो के मंदिर विश्व धरोहर स्थल के रूप में UNESCO द्वारा मान्यता हैं और ये विश्व भर से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

खजुराहो के मंदिरों की मुख्य विशेषताएँ:

  1. नागर शैली: यह शैली ज्यादातर विष्णु, शिव, और ब्रह्मा के मंदिरों के लिए प्रयुक्त हुई है, और इनमें उच्च शिखर, मंदिर की मुख्य गोपुर और अनेक अलंकरण होते हैं।
  2. अद्वितीय मूर्तिकला: खजुराहो के मंदिर अपनी अद्वितीय मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों की दीवारों पर बनी सुंदर और विविध मूर्तियां देवताओं, योगियों, और तांत्रिक दृश्यों को दिखाती हैं।
  3. खजुराहो के बनाये गए प्राकृतिक रंग: यहां के मंदिर प्राकृतिक रंगों से बने हुए हैं, जो उन्हें उनकी खास पहचान देते हैं। इन मंदिरों की गलियों में विभिन्न प्राकृतिक रंगों के पत्थरों का उपयोग किया गया है, जिनमें लाल, बैंगनी, और अन्य रंग शामिल हैं।
  4. इंग्राविंग और स्कल्प्चर का महत्व: खजुराहो के मंदिरों में विभिन्न प्रकार के इंग्राविंग और स्कल्प्चर्स देखे जा सकते हैं, जो धार्मिक और कल्याणकारी दृश्यों को प्रस्तुत करते हैं।
  5. लक्ष्मण मंदिर: यह मंदिर खजुराहो के मध्यभाग में स्थित है और यहां के सबसे बड़े और सुंदर मंदिरों में से एक है। इसका नाम भगवान लक्ष्मण के नाम पर है और यह विशेष रूप से वीरभद्र भगवान के पूजन स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।

खजुराहो के मंदिरों का महत्व:-

खजुराहो के मंदिर भारतीय शिल्पकला और धर्मिक धारा के महत्वपूर्ण प्रतीक हैं। ये मंदिर एक गहरे और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं और भारतीय शिल्पकला के सौन्दर्य को प्रमोट करते हैं। कामसूत्र के प्राचीन ग्रंथों के सुंदर चित्रण के लिए भी प्रसिद्ध हैं। खजुराहो के मंदिरों के चित्रण में कामुकता का महत्वपूर्ण स्थान है, और इसका मुख्य उद्देश्य जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाना है, जिसमें प्रेम, श्रृंगार, और यौनता भी शामिल हैं। मान्यता के अनुसार, मंदिरों के चित्रण का उद्देश्य मानव जीवन की भिन्न पहलुओं की प्रतिष्ठा करना और उनके महत्व को समझाना है। यह मंदिरों को एक सोचने का बहाना प्रदान करता है कि जीवन के सभी पहलुओं को अपनाना चाहिए।

 

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खजुराहो का इतिहास

खजुराहो( पूर्व में खजूरपुरा) भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है, जो अपने प्राचीन एवं मध्यकालीन मंदिरों के लिये विश्वविख्यात है । यह मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है । खजुराहो को प्राचीन काल में’ खजूरपुरा'( खजूरी) और’ खजूर वाहिका’ के नाम से भी जाना जाता था । यहां बहुत संख्या में प्राचीन हिन्दू और जैन मंदिर हैं । मंदिरों का शहर खजुराहो पूरे विश्व में मुड़े हुए पत्थरों से निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है । खजुराहो को इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है, जो कि देश के सर्वोत्कृष्ठ( सर्वश्रेष्ठ) मध्यकालीन स्मारक हैं । भारत के अलावा दुनिया भर के आगन्तुक और पर्यटक प्रेम के इस अप्रतिम सौंदर्य के प्रतीक को देखने के लिए निरंतर आते रहते हैं । हिन्दू कला और संस्कृति को शिल्पियों ने इस शहर के पत्थरों पर मध्यकाल में उत्कीर्ण( निर्मित) किया था । विभिन्न कामक्रीडाओं को इन मंदिरों में बेहद खूबसूरती के उभारा( बनाया) गया है । खजुराहो का मंदिर एक सभ्य सन्दर्भ, जीवंत सांस्कृतिक संपत्ति हैं, जो हमारे पास है । यह मिट्टी से पैदा हुआ एक कैनवास है, जो अपने शुद्धतम रूप में जीवन का चित्रण करने और जश्न मनाने वाले लकड़ी के ब्लॉकों पर फैला हुआ है । 950- 1050 CE के मध्य चंदेल वंश के राजा द्वारा निर्मित कराया गया जो की भारतीय शिल्पकाल का एक महत्वपूर्ण नमूनों में से एक हैं । हिंदू और जैन मंदिरों के इन सेटों को आकार लेने में लगभग सौ साल लगे । मूल रूप से 85 मंदिरों का एक संग्रह, संख्या 25 तक नीचे आ गई है । एक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल, मंदिर परिसर को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी । पश्चिमी समूह में अधिकांश मंदिर हैं, पूर्वी में नक्काशीदार जैन मंदिर हैं, जबकि दक्षिणी समूह में केवल कुछ मंदिर हैं । पूर्वी समूह के मंदिरों में जैन मंदिर चंदेल शासन के दौरान क्षेत्र में फलते- फूलते जैन धर्म के लिए बनाए गए थे । पश्चिमी और दक्षिणी भाग के मंदिर विभिन्न हिंदू देवी- देवताओं को समर्पित हैं । इनमें से आठ मंदिर विष्णु को समर्पित हैं, छह शिव को, और एक गणेश और सूर्य को जबकि तीन जैन तीर्थंकरों को हैं । कंदरिया महादेव मंदिर उन सभी मंदिरों में सबसे बड़ा है, जो बने हुए हैं ।

खजुराहो का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना है।(950 से 1050 ईसवी में निर्मित) अपने क्षेत्र में खजुराहो की सबसे पुरानी ज्ञात शक्ति वत्स थी। क्षेत्र में उनके उत्तराधिकारियों में, सुंग, कुषाण, पद्मावती के नागा, वाकाटक वंश, गुप्त, पुष्यभूति,मौर्य,प्रतिहार,बुन्देला राजवंश और चन्देल राजवंश शामिल थे। यह विशेष रूप से गुप्त काल के दौरान था कि इस क्षेत्र में वास्तुकला और कला का विकास शुरू हुआ, हालांकि उनके उत्तराधिकारियों ने कलात्मक परंपरा जारी रखी।[1] ये शहर चन्देल क्षत्रिय साम्राज्‍य की प्रथम राजधानी था। चन्देल वंश और खजुराहो के संस्थापक चन्द्रवर्मन चंदेल थे। चन्द्रवर्मन मध्यकाल में बुंदेलखंड में शासन करने वाले राजा थे।। “मान्यता है कि चंदेल राजाओं ने दसवीं से बारहवीं शताब्दी तक मध्य भारत में शासन किया। खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 ईसवीं से 1050 ईसवीं के बीच हुआ था। मंदिरों के निर्माण के बाद, चन्देलों ने अपनी राजधानी को महोबा से स्थानांतरित कर ली, लेकिन इसके बावजूद खजुराहो के महत्व में कभी कमी नहीं आई । मध्यकाल के विश्व प्रसिद्ध दरबारी कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज रासो के महोबा खंड में चन्देल क्षत्रियों की उत्पत्ति का विवरण किया।”उन्होंने लिखा है, कि काशी के सेनानायक की पुत्री हेमवती कंवर अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी थी। एक दिन वह गर्मियों की रात में कमल-पुष्पों से भरे हुए तालाब में स्नान कर रही थी। उसकी सुंदरता देखकर भगवान चन्द्र उन पर मोहित हो गए। वे मानव रूप धारण कर धरती पर आ गए और हेमवती का हरण कर लिया। दुर्भाग्य से हेमवती विधवा थी। वह एक बच्चे की मां थी। “उन्होंने चन्द्रदेव पर अपने जीवन को नष्ट करने और चरित्र पर कलंक लगाने का आरोप लगाया। अपनी गलती के पश्चाताप के लिए चन्द्रदेव ने हेमवती से एक वीर पुत्र की मां बनने का वचन दिया, और उन्होंने कहा कि वह अपने पुत्र को खजूरपुरा ले जाएगी।” उन्होंने कहा कि वह एक महान राजा बनेगा। राजा बनने पर वह बाग और झीलों से घिरे हुए अनेक मंदिरों का निर्माण करवाएगा। चन्द्रदेव ने हेमवती से कहा कि राजा बनने पर तुम्हारा पुत्र एक विशाल यज्ञ का आयोजन करेगा, जिससे तुम्हारे सारे पाप धुल जाएंगे। “चन्द्रदेव के मार्गदर्शन का पालन करते हुए, हेमवती ने अपने घर को त्याग दिया और एक छोटे-से गांव में पुत्र को जन्म दिया। इस नए जीवन के साथ, हेमवती का पुत्र चन्द्रवर्मन उनके पिता की तरह तेजस्वी, बहादुर, और शक्तिशाली था। सोलह साल की उम्र में, वह बिना हथियार के एक शेर या बाघ को मार सकता था।” पुत्र की असाधारण वीरता को देखकर हेमवती ने चन्द्रदेव की आराधना की जिन्होंने चन्द्रवर्मन को पारस पत्थर भेंट किया और उसे खजुराहो का राजा बनाया। पारस पत्थर से लोहे को सोने में बदला जा सकता था।
“चन्द्रवर्मन ने अनगिनत युद्धों में शानदार जीत हासिल की। उन्होंने कालिंजर किले का महान निर्माण करवाया। अपनी मां के प्रेरणा से, चन्द्रवर्मन ने खजुराहो को तालाबों और उद्यानों से आच्छादित कर, यहाँ पर 85 अद्वितीय मंदिरों का निर्माण करवाया।” और एक यज्ञ का आयोजन किया जिसने हेमवती को पापमुक्त कर दिया। चन्द्रवर्मन और उसके उत्तराधिकारियों ने खजुराहो में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया।

खजुराहो के मंदिरों का नाम सबसे पहले 1838 में ब्रिटिश अफसर टी.एस. बर्टन ने जवाहर नहर के किनारे के एक छोटे से गांव के नाम पर रखा था। यहां पर मौखिक परंपराओं के अनुसार, “खजुराहो” का नाम गांव के एक प्राचीन खजूर (खजूरा) वृक्ष के रूप में प्रसिद्ध है।

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